Search This Blog

Thursday 31 December 2020

आध्यात्मिक होकर और संगीत सुनकर

 

आध्यात्मिक होकर भी जीवन को अच्छे से व्यतीत किया जा सकता हैं। बहुत से संयासी पहले राजा महाराजा थे। जैसे भगवान बुद्ध उनका मन गृहस्थ जीवन में नही रम सका। इसके अलावा भी बहुत राजा महाराओ के नाम हैं। आध्यात्म में रहकर लोगो का मन पवित्र रहता हैं। मगर जो सम्पूर्ण आध्यात्म में रहते हैं। दिखावे के भी आध्यात्मिक गुरू बहुत बन रहे हैं। वहां पर सत्य का ज्ञान नही होता हैं। बल्कि शोषन होता हैं। गुरू का काम पैसे कमाने का भी नही होता हैं। समाज में कुछ गुरू अच्छे भी हैं। मगर ज्यादातर भ्रष्ट हैं। दुनिया में आकर मनुष्यो को दुख तो मिलता ही हैं। चाहे वो किसी भी रूप में हो। कोई दुख सहन कर जाता हैं। कोई सहन नही कर पाता हैं। जो सहन नही कर पाते हैं। वे शन्ति के लिए आध्यात्म की शरण में भी जाते हैं। मगर वहां भी कही तरह के लोग हैं। तथाकथित गुरू लोग शोषण कर रहे हैं। और कई तो जेलो की शोभा बढा रहे है।

परमात्मा का नाम इस भंवर रूपी संसार में मनुष्यो के लिए बहुत बडा सहारा हैं भक्ति करके देखिये मन शद्ध और पवि़त्र रहेगा। हमे बच्चपन में पढाया गया हैं। आत्मा मनुष्य के रूप में संसार में आता हैं। और दामन में दाग लगा लेता हैं। और वापस जाकर अपने बाबुल यानि परमात्मा से नजरे नही मिला पाता हैं। एक पुराना गाना हैंलागा चुनरी में दाग मिटाउ कैसे, वापस बाबुल से नजरें मिलाउ कैसे हम सब परमात्मा की संतान हैं। और परमात्मा हमारा बाबुल हैं। और बाबुल जैसे हमे चलाना चाहते हैं, हम चलते हैं। इस सोच के साथ हम चलेंगे तो हमारे दिमाग से नकरात्मक विचार बहुत कम आयेंगे।

मनुष्य नकरात्मक उर्जा को अपने मन में रखता हैं। और ये नकरात्मक उर्जा दिमाग से निकल कर शरीर पर भी हमला करती हैं। शरीर भी नकरात्मकता की आग में कमजोर होता हैं। शरीर के अंग भी नकरात्मकता के कारण प्रभावित होते हैं। और भी कही तरह की भंयकर बीमारी मनुष्य के शरीर में घर जाती हैं। अगर हम परमात्मा में आस्था मन से रखते हैं। तो हमारी नकरात्मक उर्जा कम हो जाती हैं। और उसकी जगह सकरात्मक उर्जा हमारे शरीर में घर बना लेती हैं। हमारे दिमाग में अच्छे विचार आते हैं। और शरीर पर भी सकरात्मक उर्जा का असर होता हैं। और दिमाग में भी अच्छे विचार आते हैं। और शरीर पर भी सकरात्मक उर्जा का असर होता हैं। शरीर स्वस्थ रहता हैं। मगर किसी गलत गुरू के चक्कर में आकर अंधभक्ति नही होनी चाहिए। अच्छे गुरू और आध्यात्मिक मन से अंगुलिमाल भी सन्त वाल्मिकी बन गया था। और धार्मिक ग्रन्थ की रचना कर डाली थी।

देश विदेश से शान्ति की खोज में लोग भारत में आते हैं। और हिन्दु धर्म के अनुसार पूजा पाठ में लग जाते हैं। और धर्म लाभ उठाते हैं। ये जरूरी नही हैं कि सब कुछ छोडकर भगवान की आराधना में लग जाये। ये आध्यात्म नही होता हैं। दीन हीनो की सेवा करना भी आध्यात्म होता हैं। आध्यात्म एक विस्तृत क्षेत्र हैं। हालांकि ये सारी किताब ही आध्यात्मिक हैं मगर सिर्फ भक्ति ही आध्यात्मिक नही हैं। अपने समाज के लिए कार्य करना भी आध्यात्म होता हैं। अपनो से प्रेम करने के साथ साथ दूसरो से भी प्रेम करना होता हैं। सही रास्ते पर चलकर निरन्तर तरक्की करना भी आध्यात्म हैं। आत्मखोज, सकरात्मक विचार रखना अपने शरीर और आत्मा को स्वच्छ रखना। अच्छे लोगो की संगति में रहना और जिस चीज में मन रचता बसता हो। या उन कार्यो को करने से हमे खुश मिलती हैं। वो सब आध्यात्म हैं।

अच्छा संगीत भी मन को बहुत हल्का करता हैं। संगीत तडकता भडकता भी होता हैं। मगर उसमे शोर होता हैं। संगीत वो हैं जिसमे आप खो जाये आपको अन्दर से खुशी मिले। आपके पूरे शरीर पर उसका अच्छा असर पडता हैं। कभी दोपहर में कामकाज करके या सुबह-सुबह अच्छा संगीत सुनने से दिल और दिमाग पर अच्छा असर होता हैं। जरूरी नही हैं कि वो भगवान के ही भजन हो। बल्कि प्रेम रस और पक्षियो की चचहाट सुनना भी मधुर लगता हैं। कुल मिलाकर अच्छा संगीत , हल्का संगीत, आंख मूंदकर सुने तो बहुत लाभप्रद होता हैं। ये मनुष्यो के अन्दर नकरात्मक उर्जा को बाहर निकालकर सकारात्मक उर्जा भरता हैं। मानसिक विकारो के लिए संगीत थेरेपी का भी इस्तेमाल किया जाता है। संगीत सुनकर कभी कभी मनुष्य के आंसू भी जाते हैं। ऐसे तब होता हैं जब मनुष्य का मन भारी हो जाता हैं। और थोडी देर आंसू बहाने से मनुष्य का मन हल्का हो जाता हैं।

कभी हल्की धूप में आंखे मूंदकर संगीत सुनकर महसूस करे। या पक्षियों, कोयल, मोर की चचाहट या पानी की आवाज को सुने। बहुत हल्का महसूस होता हैं। ये भी एक तरह का आध्यात्म ही हैं। पर वो ही संगीत जिससे आपको खुशी महसूस होती हैं। ये हमारे दिमाग के लिए आहार का कार्य करता हैं। हम खुद तो आहार लेते हैं। मगर दिमाग को भूल जाते हैं।

No comments:

Post a Comment