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Wednesday 30 December 2015

इलाहाबाद हाईकोर्ट नहीं है पर्याप्त, प्रदेश को नई बेंच की दरकार

लॉ कमिशन की 120 वीं  रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर 10 लाख की जनसंख्या पर कम से कम 50 जजों की न्युक्ति की शिफारिश की गई थी। लेकिन 20 करोड़ 42 लाख की जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश के पास केवल 160 जज ही मौजूद हैं, जिससे वर्षों से पड़े लंबित मामलों का निपटारा नही हो पा रहा है। वहीं ये एक तरह से लॉ कमिशन की रिपोर्ट का उल्लंघन भी है। लॉ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में लगभग 225 जज होने चाहिए।

लेकिन एक हकीकत ये भी है कि अगर इतने सारे जजों की न्युक्ति कर भी ली गई तो शायद इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच में जजों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था न हो सके। हांलाकि पिछले काफी लंबे समय से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अलग हाईकोर्ट बेंच की मांग की जा रही है। अगर ऐसा होता है तो ये पश्चिमी यूपी के लोगों और जजों के लिए भी सहूलियत होगी। लेकिन पश्चिमी यूपी लगातार राजनीतिक भेदभाव का शिकार हो रही है।

जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधीन 160 जज होने के बावजूद केवल एक खंडपीठ की व्यवस्था लखनऊ में की गई है। जबकि महाराष्ट्र में 40 जजों के लिए तीन हाईकोर्ट की बेंच की व्यवस्था हैं। वहीं राजस्थान में 42 जजों के लिए हाईकोर्ट के साथ ही दो हाईकोर्ट की बेंच इंदौर और ग्वालियर में कार्यरत है। वहीं इस मामले में पूर्वोत्तर के राज्यो की हालत भी उत्तर प्रदेश से ठीक है। पुर्वोत्तर राज्यों के लिए असम राज्य के गुवाहाटी में हाईकोर्ट की व्यवस्था की गयी है, जबकि दो खंडपीठ अगरतला और शिलांग में हैं। वहीं बैंगलुरु हाईकोर्ट की तीन खंडपीठ हुबली, धारवाड और गुलबर्गा में है। 

20 करोड़ की आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के लिए मात्र एक खंडपीठ की व्यवस्था लखनऊ में की गई है। उत्तर प्रदेश का इलाहाबाद हाईकोर्ट लंबित पड़े मामलों की भरमार है फिर प्रदेश की सरकार नई हाईकोर्ट बेंच बनाने की मांग को गैरजरूरी करार दे रही है। हाईकोर्ट में जजों की भारी कमी है। सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 5 हजार न्यायाधीशों की कमी है। हालात ये हैं कि देश में 1600 केस पर सिर्फ एक जज की न्युक्ति है। वहीं 20 लाख लोगों को 10 साल से न्याय नहीं मिला है। अदालतों में लंबित मामलों की यह सबसे बड़ी वजह है।

गौरतलब है कि 2009 में 18वें विधि आयोग की 230वीं रिपोर्ट में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अलग खंडपीठ बनाने का जोर दिया गया था। इसके साथ ही वर्ष 1980 में जस्टिस जसवंत सिंह कमीशन की रिपोर्ट में भी क्षेत्र की जनसंख्या और दूरी को आधार बनाकर नई हाईकोर्ट बेंच की मांग को जायाज करार दिया गया था। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 लाख मामले लंबित पड़े हैं। इन 15 लाख लंबित मामलों में अकेले पश्चिमी यूपी के 57 फीसदी मामले हैं। कई बार ये लंबित पड़े मामले इतने लंबे खिंच जाते हैं कि लोगों की पूरी उम्र गुजर जाती है। लेकिन लोगों को इंसाफ नहीं मिलता है।

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