राजधानी वासियों को अप्रैल से तीन गुना तक वाटर टैक्स चुकाना होगा। तीन साल से जलकल के जिस प्रस्ताव को नगर निगम सदन पास नहीं कर रहा था, शासन ने उसे मंगलवार को हरी झंडी दे दी।
अभी सबसे छोटे मकान का वाटर टैक्स सालाना 441 रुपये आता है लेकिन अप्रैल में इसका करीब तीन गुना यानी 1350 रुपये चुकाना होगा। हालांकि वाटर मीटर लगाने पर कोई फैसला नहीं हुआ।
केंद्र सरकार की जेएनएनयूआरएम योजना आने के बाद 2012 में जलकल विभाग ने वाटर टैक्स की दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव तैयार किया था। इसे मंजूरी के लिए कई बार नगर निगम सदन में पेश किया गया, मगर हर बार यह प्रस्ताव अटक गया।
वाटर टैक्स की वसूली, पेयजल उत्पादन और आपूर्ति में आ रहे खर्च का हवाला देते हुए जलकल महाप्रबंधक व नगर आयुक्त ने सदन में कई बार यह कहा कि वाटर टैक्स की दरें बढ़ाई नहीं गईं तो पेयजल व्यवस्था का रखरखाव मुश्किल हो जाएगा।जलकल के वित्त नियंत्रक एके गुप्ता कहते हैं कि इस समय एक किलो लीटर पेयजल के उत्पादन पर 9.36 रुपये का खर्च आता है। जबकि उपभोक्ता से 2.45 रुपये प्रति किलो लीटर ही लिया जाता है। यह दर करीब 15 साल पुरानी है।
पेयजल उत्पादन खर्च और टैक्स वसूली को देखते हुए दरों का बढ़ाया जाना जरूरी है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में पेयजल योजनाएं टैक्स वसूली से होने वाली आय से ही चलती हैं। यहां पर टैक्स की वसूली कम है जबकि खर्च ज्यादा। परीक्षण के बाद दरों में बढ़ोतरी का आदेश जारी होगा।
श्रीप्रकाश सिंह, सचिव नगर विकास
जलकल विभाग की वाटर टैक्स दरें पिछले डेढ़ दशक से नहीं बढ़ी हैं। इससे विभाग को चलाना मुश्किल हो गया है। यदि टैक्स नहीं बढ़ेगा तो जो नई योजनाएं जेएनएनयूआरएम में बनी हैं, उनका रखरखाव कैसे करेंगे। नई दरें नए वित्तीय वर्ष से लागू की जाएंगी।
राजीव वाजपेई, महाप्रबंधक जलकल
अभी सबसे छोटे मकान का वाटर टैक्स सालाना 441 रुपये आता है लेकिन अप्रैल में इसका करीब तीन गुना यानी 1350 रुपये चुकाना होगा। हालांकि वाटर मीटर लगाने पर कोई फैसला नहीं हुआ।
केंद्र सरकार की जेएनएनयूआरएम योजना आने के बाद 2012 में जलकल विभाग ने वाटर टैक्स की दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव तैयार किया था। इसे मंजूरी के लिए कई बार नगर निगम सदन में पेश किया गया, मगर हर बार यह प्रस्ताव अटक गया।
वाटर टैक्स की वसूली, पेयजल उत्पादन और आपूर्ति में आ रहे खर्च का हवाला देते हुए जलकल महाप्रबंधक व नगर आयुक्त ने सदन में कई बार यह कहा कि वाटर टैक्स की दरें बढ़ाई नहीं गईं तो पेयजल व्यवस्था का रखरखाव मुश्किल हो जाएगा।जलकल के वित्त नियंत्रक एके गुप्ता कहते हैं कि इस समय एक किलो लीटर पेयजल के उत्पादन पर 9.36 रुपये का खर्च आता है। जबकि उपभोक्ता से 2.45 रुपये प्रति किलो लीटर ही लिया जाता है। यह दर करीब 15 साल पुरानी है।
पेयजल उत्पादन खर्च और टैक्स वसूली को देखते हुए दरों का बढ़ाया जाना जरूरी है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में पेयजल योजनाएं टैक्स वसूली से होने वाली आय से ही चलती हैं। यहां पर टैक्स की वसूली कम है जबकि खर्च ज्यादा। परीक्षण के बाद दरों में बढ़ोतरी का आदेश जारी होगा।
श्रीप्रकाश सिंह, सचिव नगर विकास
जलकल विभाग की वाटर टैक्स दरें पिछले डेढ़ दशक से नहीं बढ़ी हैं। इससे विभाग को चलाना मुश्किल हो गया है। यदि टैक्स नहीं बढ़ेगा तो जो नई योजनाएं जेएनएनयूआरएम में बनी हैं, उनका रखरखाव कैसे करेंगे। नई दरें नए वित्तीय वर्ष से लागू की जाएंगी।
राजीव वाजपेई, महाप्रबंधक जलकल
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